मोक्ष की प्राप्ति उस जातक की होती है, जो अपने समस्त कर्मों से मुक्त हो जाता है। कुण्डली का द्वादश भाव यदि मोक्ष का है, तो षष्ठ भाव उन कर्मरूपी ऋणों से मुक्त होने का है।
https://astronorway.blogspot.com/
ये दोनों भाव स्पष्ट एवं निश्चित रूप से न केवल मुक्ति का सङ्केत देते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि क्या जातक वर्तमान जन्म में मोक्ष मार्ग का अवलम्बन कर पाने में समर्थ होगा या नहीं। इसके अतिरिक्त ये भाव पूर्व जन्म के ऋणों को चुकाने के लिए या उनके कारण उत्पन्न होने वाले कष्टों और सुखों को सहन करने की योग्यता की सूचना भी देते हैं।https://astronorway.blogspot.com/
जब कोई ग्रह षष्ठ भाव में होता है, तो स्पष्टतः द्वादश भाव को दृष्ट करता है और ऐसा ही द्वादश भाव में स्थित ग्रह भी करता है। षष्ठ भाव एक दुष्ट भाव है, इसमें कौन सा ग्रह कैसा फल देगा, इसको समझना है।
https://astronorway.blogspot.com/
षष्ठ भाव अपने भीतर अनेक फलों को रखता है। भावमञ्जरी (२/१६) के अनुसार षष्ठ से भाव शत्रु, रोग, घाव, षडरस, चिंता, व्यथा, भय, कमर, पशु, मामा, नाभि, अंग-भंग, विपत्ति, चोर, विघ्न, शंका, सौतेली माता, युद्ध, नेत्ररोग आदि का विचार करना चाहिए।https://astronorway.blogspot.com/
जब कोई शुभ ग्रह षष्ठ भाव में होगा, तो वह षष्ठ भाव के समस्त फलों का शुभ फल नहीं देगा, अपितु कुछ फलों हेतु उत्तम रहेगा, शेष फलों के लिए वह हानिकारक होगा।
इसी प्रकार जब पापग्रह षष्ठ भाव में हो, तो वह उन फलों के लिए अच्छा होगा, जिसके लिए कोई शुभग्रह हानिकारक हो। और वही पापग्रह उन फलों हेतु अशुभ होगा, जिसके लिए एक शुभग्रह अच्छा होता है।https://astronorway.blogspot.com/
षष्ठ भाव ऋण का फल भी रखते। अभी यहाँ जिस ऋण की बात की जा रही है, वह धन विषयक नहीं बल्कि कर्म विषयक ऋण है, जिसे हम जन्मों-जन्मान्तरों से सञ्चित कर रहे हैं। अतः एक शुभ ग्रह की तुलना में एक पाप ग्रह षष्ठ भाव के अशुभ प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक शमन करता है। षष्ठ भाव में शुभग्रह होने से भाव की दुष्टता में वृद्धि होती है, वहीं वह ग्रह द्वादश को दृष्ट कर षष्ठ भाव का लिंक द्वादश से जोड़ता है जिससे जातक को धनहानि सहित व्यय करना पड़ता है, फलतः इससे निकलने हेतु जातक को ऋण भी लेना पड़ता है।
https://astronorway.blogspot.com/
इसके विपरीत, षष्ठ भाव में यदि एक पापग्रह स्थित हो, तो वह उस भाव के नकारात्मक परिणामों को सीमित करेगा, किन्तु द्वादश भाव में दृष्टिपात करने के कारण अन्य प्रतिकूल फल देगा, जैसे अनिद्रा, अंग हानि, पद हानि आदि https://astronorway.blogspot.com/
यदि द्वादश भाव में कोई पापग्रह स्थित हो स्वयं द्वादश को पीड़ित कर उपर्युक्त फल देगा, यद्यपि षष्ठ भाव पर पड़ने वाली दृष्टि, षष्ठ भाव के नकारात्मक फलों का शमन करेगी, क्योंकि षष्ठ भाव पर पड़ने वाली पापदृष्टि लंबित ऋण से मुक्ति या इसके होने का संकेत देती है।
https://astronorway.blogspot.com/
जब द्वादश भाव में एक शुभग्रह स्थित होता है, तो वह किसी मनोकामना की पूर्ति हेतु व्यय का सूचक होता है जिसे प्रायः प्रतिकूल नहीं माना जाता है विशेषतः जब वह लग्नेश हो।(क्रमशः)✍ज्यो० https://astronorway.blogspot.com/
No comments:
Post a Comment