भगवान् के #२४_अवतार हैं , उनमें पहला अवतार सनक -सनन्दन - सनातन - सनत्कुमार हैं ।
वे चार हैं , लेकिन उनके एक विचार , एक आचरण व एक साधना है तथा एक-दूसरे के साथ अपनत्व है ।
उन्होंने मानव जाति को शिक्षा देने के लिये बद्रिकाश्रम - हिमालय में तप किया ।
सुनी हुई बातों की अपेक्षा देखी हुई बातें अधिक याद रहती है , बोलने और चर्चा करने की अपेक्षा चरित्र में चरितार्थ करना ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षा का मार्ग है ----- यह इन महापुरुषों के आचरण से सीखा जा सकता है ।
सनत्कुमार आदि चारों ऋषि-बालक नित्य हरि-शरणम् का जप करते हैं , आपस में सत्संग करते हैं , उनमें वैराग्य है , उन्हें किसी बाह्य-वस्तु की आवश्यकता नहीं है ।
वे आपस में संघर्ष भी नहीं करते हैं , वे केवल हरि चर्चा करते हुए मानव जाति का हित सोचते हैं , वे छोटे-बड़े का भेद नही करते ।
भगवान् के इस अवतार का संदेश यह है कि समूह में, परिवार में एकमत से रहना चाहिये , समूह या परिवार में समन्वय और सामंजस्य ही बुद्धि की परिपक्वता है , इसीसे हमारे परिवार में शांति - एकता -भाईचारा संभव है तथा तभी सह-अस्तित्व स्थायी हो सकता है ।
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