यदि जन्म विवरण सही है तो मात्र लग्न कुंडली से सभी समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
♦️विवाह के लिए सप्तम भाव द्वितीय भाव एवं गुरु या शुक्र को देखा जाता है ।
👉 सप्तम भाव एवं द्वितीय भाव के स्वामी मंगल उच्च राशि में विराजमान है एवं सप्तम भाव में स्वराशि में दृष्टि भी डाल रहे हैं ।
परंतु मंगल – राहु , केतु , शनि से पीड़ित है । वैवाहिक जीवन में समस्या का सबसे बड़ा कारण है । यदि सप्तम भाव या सप्तमेश पर राहु – शनि का प्रभाव हो तो विवाह में बहुत ज्यादा विलंब होता है
👉 और सप्तम भाव में विलंब करवाने वाले ग्रह शनि स्वयं विराजमान है एवं द्वितीय भाव में सूर्य भी राहु से पीड़ित है अर्थात द्वितीय भाव भी पीड़ित माना जाएगा ।
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ऐसे योग में 30 – 32 वर्ष के पहले विवाह होना मुश्किल है और यदि इसके पहले विवाह हो जाता है तो ज्यादातर देखा गया है कि दो विवाह का योग बन जाता है ।
💥और विवाह का समय जानने के लिए जन्म कुंडली के साथ हस्तरेखा में भी विवाह रेखा की स्थिति को देखना आवश्यक है । क्योंकि पहले के समय में जो ग्रहों के अनुसार विवाह के समय की गणना की गई है आज में बहुत अंतर है । जैसे पहले ग्रहों के अनुसार गणना करके 16 वर्ष में भी विवाह का योग बताया गया था और उस समय होता भी था । परंतु आज तो किसी का नहीं होता है ।
♦️अब कोई भी उपाय करके वैवाहिक जीवन के समय को आगे पीछे नहीं किया जा सकता है ।
👉 उपाय करने से वैवाहिक जीवन में जो समस्या का योग बन रहा है अर्थात की विवाह होने के बाद जो परेशानी , मतभेद , विच्छेद इत्यादि का योग बन रहा है उसका समाधान किया जा सकता है ।
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