♦️(1) यदि चतुर्थेश और नवमेश मिलकर लग्न में स्थित हों तो जातक को वाहन, भूमि, भवन पशु एवं भाग्य की प्राप्ति होती है।
♦️(2) यदि गुरु चतुर्थ भाव को देखे अथवा उसमें स्थित हो तो जातक को बहुत सुख की प्राप्ति होती है और धीरे-धीरे जातक भूमि, भवन, वाहन आदि का मालिक बन जाता है।
♦️(3) यदि चतुर्थ भाव का स्वामी और गुरु किसी केन्द्र अथवा त्रिकोण स्थान में इकट्ठे हों तो जातक सुखी जीवन एवं भूमि, भवन, वाहन आदि को पाता है।
♦️(4) वाहन कारक शुक्र चतुर्थ भाव के स्वामी के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो तो वाहन,भूमि, मकान आदि की सुगम रूप से प्राप्ति होती है।
♦️ (5) यदि चतुर्थ भाव का स्वामी और शुक्र दोनों एकादश नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो तो विशेष रूप से अच्छे वाहन की प्राप्ति होती है।
♦️ (6) यदि चतुर्थ भाव के स्वामी की युति अथवा दृष्टि आदि द्वारा चन्द्रमा से सम्बन्ध हो तो टांगा आदि ऐसे वाहन की प्राप्ति होती है जिसमें अश्व का उपयोग होता हो।
♦️ (7) कर्क लग्न हो और बुध, शुक्र चतुर्थ भाव में स्थित हों तो बुध और की दशा में शत्रु ग्रह शत्रु की भुक्ति में जातक को वाहन, भूमि आदि की प्राप्ति होती है।
♦️ (8) यदि चतुर्थ भाव में बृहस्पति स्थित हों तो जातक को घोड़े की सवारी प्रिय होती है।
♦️ (9) यदि चतुर्थेश लाभ स्थान में हो और लाभेश चतुर्थ स्थान में हो तो भाग्य वाहन योग सिद्ध होता है।
♦️(10) यदि पांचवें भाव का स्वामी नवम भाव में हो और यदि नवम भाव का स्वामी दशम भाव में हो तो जातक की कुण्डली में भाग्य, वाहन योग सिद्ध होता है।
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