Tuesday, May 31, 2022

#ब्रह्मकमल उत्तराखंड राज्य का पुष्प है। केदार नाथ से 2 किलोमीटर ऊपर वासुकी ताल के समीप तथा ब्रह्मकमल नामक तीर्थ पर ब्रह्मकमल सर्वाधिक उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त फूलों की घाटी एवं पिंडारी ग्लेशियर रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है।

#ब्रह्मकमल पुष्प की कोई जड़ नहीं होती यह पत्तो से ही पनपता है यानी इसके पत्तों को बोया जाता है। इसे अधिक पानी और गर्मी से बचाना जरूरी है। भारत में Epiphyllum oxypetalum ब्रह्म कमल तथा उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। जिसमें ब्रह्मकमल का सर्वोच्च स्थान है। यह एक ऐसा फूल है जिसकी महालक्ष्मी वृद्धि के लिए पूजा की जाती है। शेष पुष्पों से भगवान की पूजा करते हैं।

#ब्रह्मकमल पुष्प रात्रि में 9 बजे से 12.30 के बीच ही खिलता है। इसे खिलते हुए देखना बहुत सौभाग्य सूचक होता है। इसके दर्शन से अनेक परेशानियों से निजात मिलती है।

#ब्रह्मकमल साल में केवल एक महीने सितंबर में ही पुष्प देता है। वो भी एक तने से एक पुष्प।

महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णुजी ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर 1008 शिव नामों से 1008 ब्रह्मकमल पुष्पों से शिवार्चन किया और वे, कमलनयन कहलाये। यही इन्हें सुदर्शन चक्र वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। केदारनाथ शिवलिंग को अर्पित कर प्रसाद के रूप में दर्शनार्थियों को बांटा जाता है।

ब्रह्म कमल, फैनकमल कस्तूरा कमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं। भावप्रकाश निघण्टु नामक आयुर्वेद की एक बहुत ही पुरानी किताब में संस्कृत के एक श्लोक में कमलपुष्प का वर्णन है-

"वा पुंसि पद्म नलीनमरविन्दं महोत्पलम्।
सहस्त्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेश्यम्।।
पक्केरुहं तामरसं सारसं सरसी रुहम्।
बिसप्रसूनराजीवपुष्कराम्भो रुहाणी च।।
कमलं शीतलं वर्णयं मधुरं कफपित्तजित्"

अर्थात- कमलपुष्प, पुरहन पद्म, नलिन, अरविंद, महोत्पल, सहस्त्र पत्र, कमल, शतपत्रं, कुशेषय, पक्केरुह, तामरस, सरस, सरसीरुह, विसप्रसून, राजीव, पुष्कर और अम्भोरूह ये सब वैदिक संस्कृत नाम हैं।

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