#शास्त्रोक्त_जप_करने_की_विधि
जप तीन प्रकार का होता है
१) वाचिक :- धीरे-धीरे बोलकर किए जाने वाले जप को वाचिक कहते है ।
२) उपांशु :- जिसमे होठ तो हिले पर आवाज न आए उसे उपांशु जप कहते है ।
३) मानसिक :- जिस जप मे जीभ व होठ न हिले व मन ही मन जप हो उसे मानसिक जप कहते है ।
वाचिकश्च उपांशुश्च मानसस्त्रिविधः स्मृतः ।
त्रयाणां जपयज्ञानां श्रैयान् स्यादुत्तरोत्तरम् ।।
अर्थ :- तीनो जपो में पहले की अपेक्षा दुसरा व दुसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रैष्ठ है । ( नृसिंह पुराण )
प्रातः काल हाथ को नाभी के पास, मध्याह्न मे ह्रदय के समीप और सायंकाल मुंह के समानांतर मे रखे । जप की गिनती चंदन, अक्षत, पुष्प, धान्य व मिट्टी से न करे । जप की गिनती के लिए लाख, कुश, सिन्दुर, और सुखे गोबर को मिलाकर गोलिया बना ले ।
जप करते समय माला दाहिने हाथ मे पकडे व माला को गौमुखी अथवा कपडे मे रखे, ध्यान रहे कपडा गीला न हो ।
#माला_कैसे_फेरे :- जप के लिए माला अनामिका अंगुली पर रखकर अंगुठे से स्पर्श करते हुए मध्यमा अंगुली से फेरना चाहिए तर्जनी अंगुली नही लगाना चाहिए
मेरौ तु लड्घिते देवि न मन्त्रफलभाग्भवेत् ।
अर्थ :- सुमेरु का उल्लड्घन कर किये गए जप का फल नही मिलता है । अतः सुमेरु के पास से माला को घुमाकर दूसरी बार जपे ।
जप करते समय हिलना, डुलना, बोलना निषिद्ध है । यदि जप करते समय बोल दिया जाए तो भगवान का स्मरण कर फिरसे जप करना चाहिए ।
यदि माला गिर जाय तो 108 बार जप करे । यदि माला पैर से गिर जाए तो इसे धोकर पुनः जप करे ।
#जप_कहॉ_करे :- घर मे जप करने से एक गुना, गौशाला मे जप करने से सौ गुना, वन या वाटिका और तीर्थ स्थल मे जप करने से हजार गुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी तट पर लाख गुना, मंदिर मे करोड गुना तथा शिवलिंग के पास जप करने से अनंत गुना फल मिलता है ।
#जप_माला_कैसी_हो :- वैष्णव भक्त तो तुलसी माला से ही जप करे, शैव भक्त रुद्राक्ष की माला से जप करे व लक्ष्मी या देवी के जप कमलगटटे या मोती की माला से जप करे ।
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नित्य नाम जप, पुजा पाठ व सही दिनचर्या के विषय मे शास्त्रोक्त के प्रमाण सहित
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